चलिए जानतें हैं सबसे लोकप्रिय ऋषि पंचमी कथा In Hindi

Dharmik Chalisa & Katha

आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है  ऋषि पंचमी कथा In Hindi. ताकि आप Rishi Panchami Katha In Hindi PDF के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकें। हमारा मकसद है कि हम आपको सबसे बढ़िया Rishi Panchami katha In MarathiAnd Hindi के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में मदद करें।

बता दें कि ऋषि पंचमी कोई त्योहार नहीं है, इस दिन किसी प्रभु की पूजा – अर्चना नहीं की जाती, अपितु सप्त ऋषियों की पूजा-अर्चना  की जाती है.

दरअसल हरतालिका तीज  के दो दिन पश्चात् एवं प्रभु श्री गणेश चतुर्थी  के एक दिन पश्चात ऋषि पंचमी मनाई जाती है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है. ये व्रत महिलाओं के लिए एकदम अटल एवं सौभाग्यवती व्रत माना जाता है. इस व्रत को रखने से महिलाएं रजस्वला दोष से मुक्ति हो जाती है. 

मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि यदि महिलाएं ऋषि पंचमी के व्रत के दौरान गंगा स्नान कर लें तो उनका फल कई सौ गुना बढ़ जाता है. कहते हैं यदि ऋषि पंचमी के व्रत को पूरी श्रद्धा अनुसार किया जाए, तो जीवन के सभी दुख एवं कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं. इस दिन विधि पूर्वक व्रत किया जाता है. ऋषियों की पूजा-आराधना की जाती है एवं व्रत कथा को भी पढ़ते हैं.

कथा – 

एक उत्तक नाम का ब्राहम्ण अपनी पत्नी सुशीला के साथ रहा करता था. उसके एक पुत्र एवं पुत्री थी. दोनों ही विवाह के योग्य थे. पुत्री का विवाह उत्तक ब्राह्मण ने सुयोग्य वर के साथ कर दिया, परन्तु कुछ ही दिनों के पश्चात उसके पति की अकालमृत्यु हो गई. इसके पश्चात उसकी पुत्री मायके वापस आ गई. एक दिन विधवा पुत्री अकेले सो रही थी, तभी उसकी मां ने देखा कि पुत्री के शरीर पर कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं. अपनी पुत्री का ऐसा हाल देखकर उत्तक की पत्नी बहुत ही चिंतित हो गई. वह अपनी पुत्री को पति उत्तक के पास लेकर आई तथा बेटी की हालत दिखाते हुए बोली कि, ‘हे प्राणनाथ, मेरी साध्वी बेटी की ये गति कैसे हुई है’? 

उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाने के पश्चात देखा कि पूर्वजन्म में उनकी पुत्री ब्राह्मण की पुत्री थी, परन्तु राजस्वला (महामारी) के दौरान उसने पूजा के बर्तन छू लिए थे तथा इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था. इस कारण से उसे इस जन्म में शरीर पर कीड़े पड़े हैं. फिर पिता के बताये गये अनुसार पुत्री ने इस जन्म में इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया. इस व्रत को करने से उत्तक की बेटी को अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई.

ऋषि पंचमी पर मंत्र – 

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।

जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।

गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।

ध्यान रहे कि ऋषि पंचमी पर पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण बहुत ही शुभ माना जाता है. कहते हैं इस व्रत के दिन जितना हो सके उतना प्रभु का स्मरण अवश्य करना चाहिए. तो ऐसे में आप ऋषि मुनियों के मंत्र का जाप, ध्यान आदि करके भी अपने पापों से मुक्ति अवश्य पा सकते हैं.

महत्व

बता दें कि हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी को मुख्य रूप से व्रत के रूप में ही जाना जाता है। यह दिन भारतीय ऋषियों के सम्मान के तहत मनाया जाता है। ऋषि पंचमी पर सप्तऋषि के रूप में सम्मानित 7 ऋषियों की पूजा – आराधना की जाती है, जिनमें वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज शामिल हैं।

पूजन विधि – 

  • ऋषि पंचमी के दिन महिलाओं को प्रातः काल उठकर स्नानादि के पश्चात साफ-सुथरे कपड़े अवश्य पहनने चाहिए। इस दिन पूरे घर को पवित्र करने के लिए गाय के गोबर या फिर गंगाजल का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके पश्चात सप्तऋषियों की प्रतिमा का निर्माण भी अवश्य करना चाहिए।
  • वहीं प्रतिमा की स्थापना के पश्चात कलश की स्थापना करके उपवास का संकल्प लेते हुए सप्तऋषियों का पूजन हल्दी, चंदन, पुष्प, अक्षत आदि से करना चाहिए।
  • दरअसल पूजन के दौरान ‘कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।’ मंत्र का जाप भी ज़रूर करना चाहिए।
  • इसके पश्चात् सप्तऋषियों की कथा भी सुननी चाहिए और फिर कथा के बाद प्रसाद भी बांटना चाहिए।
  • ध्यान देने वाली बात यह है कि इस दिन व्रतधारी स्त्रियों को जमीन में बोए हुए किसी भी अनाज को ग्रहण नहीं करना चाहिए अपितु मोरधन या पसई धान के चावल का सेवन करना चाहिए।
  • वहीं स्त्री को राजस्वला स्थिति के समाप्त होने के बाद व्रत का उद्यापन भी करना चाहिए। उद्यापन के दिन सात ब्रह्माणों को खाना खिलाकर उन्हें दान-दक्षिणा भी अवश्य देनी चाहिए।