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Annapurna Vrat Katha अन्नपूर्णा माँ व्रत | विधि | लाभ | आरती

Dharmik Chalisa & Katha

Annapurna Mata अन्नपूर्ण माता कौन हैं –

अन्नपूर्णा दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘अन्न’ जिसका अर्थ है भोजन और ‘पूर्ण’ का अर्थ है ‘पूरी तरह से भरा हुआ’. अन्नपूर्णा भोजन और रसोई की देवी है. वह देवी पार्वती का अवतार हैं जो भगवान शिव की पत्नी हैं. वह पोषण की देवी हैं और अपने भक्तों को कभी भी भोजन के बिना नहीं रहने देती हैं.

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काशी की देवी हैं माता अन्नपूर्णा 

उन्हें उत्तर प्रदेश में काशी की देवी भी माना जाता है. काशी या वाराणसी को प्रकाश की नगरी कहा जाता है क्योंकि देवी न केवल शरीर को पोषण प्रदान करती हैं, बल्कि आत्मज्ञान के रूप में आत्मा को भी पोषण प्रदान करती हैं. वह हमें ज्ञान प्राप्त करने की ऊर्जा देती है.

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Annapurna Vrat katha vidhi-  अन्नपूर्णा माता के व्रत कथा की विधि है

  1. 1.जिस दिन साधक को अन्नपूर्णा माता का व्रत करना हो उस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करके रसोई और चूल्हे की अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए.
  2. इसके बाद माता अन्नापूर्णा की प्रतिमा या तस्वीर को किसी चौकी पर स्थापित करें.
  3. इसके बाद सूत का धागा लेकर उसमें 17 गांठे लगानी चाहिए. उस धागे पर चंदन और कुमकुम लगाकर मां अन्नापूर्णा के चित्र के आगे रखना चाहिए.
  4. इसके बाद 10 दूर्वा, 10 अक्षत अर्पित करने चाहिए.
  5. इसके बाद मां अन्नापूर्णा की धूप व दीप आदि से विधिवत पूजा करें.
  6. इसके बाद मां अन्नापूर्णा से प्रार्थना करें कि हे मां मुझे धन, धान्य, पशु पुत्र, आरोग्यता ,यश आदि सभी कुछ दें. हे देवी मैं आपको प्रणाम करता/ करती हूं.
  7. इसके बाद पुरुष इस धागे को दाएं हाथ की कलाई पर और महिला इस धागे को बाएं हाथ की कलाई पर पहन लें.
  8. 8 . इसके बाद मां अन्नपूर्णा की कथा सुने या पढ़ें. माता अन्नपूर्ण की कथा नीचे दी हुई है.
  9. घर में बनाए गए किसी भी मीठे प्रसाद का भोग लगाएं और उनकी धूप व दीप से आरती उतारें.
  10. इसके बाद 17 हरे धान के चावल और 16 दूर्वा लेकर मां अन्नापूर्णा की प्रार्थना करें और कहें हे आप तो सर्वशक्तिमयी हैं, इसलिए सर्वपुष्पयी ये दूर्वा मैं आपको समर्पित करता/ करती हूँ .
  11. 11.जब पूजा पूर्ण हो जाए तो इसके बाद किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को अन्न का दान अवश्य करें.

Annapurna Vrat Katha Ke Laabh-

माता अन्नपूर्णा की कथा के फायदे अनंत एवं असीमित हैं लेकिन हम उनमें से कुछ नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं –

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भक्तों का मानना है कि मां अन्नपूर्णा की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नहीं होती है. शास्त्रों के अनुसार जो भी भक्त व्रत के साथ दान देता है उसे कभी किसी प्रकार की कोई कमी ही नहीं रहती है.

ऐसी मान्यता है कि माता के व्रत एवं रसोई की सफाई करने और अन्न का सदुपयोग करने से मनुष्य के जीवन में कभी कोई भी बीमारी नहीं आती .

ऐसा भी कहा गया है कि इस व्रत को करने से घर में कलह-क्लेश दूर रहता है तथा नौकरी हो या प्रमोशन कोई भी कार्य नहीं रुकता, तरक्की ही तरक्की मिलती है. 

जो भी व्यक्ति मां अन्नपूर्णा की पूजा करता है. उसे मां का आर्शीवाद अवश्य प्राप्त होता है.

मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा व्रत को करने से परिवार को सुख शान्ति मिलती है, इसलिए यह व्रत सम्रद्धि बनाये रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक है तथा यह व्रत सभी स्त्री व पुरुषों के लिए है और इस व्रत में केले का पूजन अवश्य करना चाहिए.

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Annapurna Katha-

आइये मित्रों हम सब annapurna mata katha को पूरे मन से पढ़ें एवं श्रवण करें. जैसा की हमने पहले ही बताया है कि Annapurna Devi Ki Katha के श्रवण मात्र से सभी कष्ट दूर हो के दरिद्रता का नाश होता है आइये अब annapurna katha in hindi के माध्यम से इनका अनुभव करें-  

Annapurna Vrat Katha अन्नपूर्णा माँ की कथा

एक समय की बात है. काशी निवासी धनंजय की पत्नी का नाम सुलक्षणा था . उसे अन्य सब सुख प्राप्त थे, केवल निर्धनता ही उसके दुःख का कारण थी. यह दुःख उसे हर समय सताता था .

एक दिन सुलक्षणा पति से बोली- स्वामी! आप कुछ उद्यम करो तो काम चले . इस प्रकार कब तक काम चलेगा ? सुलक्षणा की बात धनंजय के मन में बैठ गयी और वह उसी दिन विश्वनाथ शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए बैठ गया और कहने लगा- हे देवाधिदेव विश्वेश्वर ! मुझे पूजा-पाठ कुछ आता नहीं है, केवल तुम्हारे भरोसे बैठा हूँ . इतनी विनती करके वह दो-तीन दिन भूखा-प्यासा बैठा रहा .

यह देखकर भगवान शंकर ने उसके कान में ‘अन्नपूर्णा ! अन्नपूर्णा!! अन्नपूर्णा!!’ इस प्रकार तीन बार कहा. यह कौन, क्या कह गया? इसी सोच में धनंजय पड़ गया कि मन्दिर से आते ब्राह्मणों को देखकर पूछने लगा- पंडितजी ! अन्नपूर्णा कौन है ?

ब्राह्मणों ने कहा- तू अन्न छोड़ बैठा है, सो तुझे अन्न की ही बात सूझती है . जा घर जाकर अन्न ग्रहण कर .

धनंजय घर गया, स्त्री से सारी बात कही, वह बोली-नाथ! चिंता मत करो, स्वयं शंकरजी ने यह मंत्र दिया है. वे स्वयं ही खुलासा करेंगे. आप फिर जाकर उनकी आराधना करो .

धनंजय फिर जैसा का तैसा पूजा में बैठ गया. रात्रि में शंकर जी ने आज्ञा दी . कहा- तू पूर्व दिशा में चला जा .

वह अन्नपूर्णा का नाम जपता जाता और रास्ते में फल खाता, झरनों का पानी पीता जाता . इस प्रकार कितने ही दिनों तक चलता गया .

वहाँ उसे चांदी सी चमकती बन की शोभा देखने में आई . सुन्दर सरोवर देखने में या, उसके किनारे कितनी ही अप्सराएं झुण्ड बनाए बैठीं थीं .

एक कथा कहती थीं . और सब ‘मां अन्नपूर्णा’ इस प्रकार बार-बार कहती थीं.

यह अगहन मास की उजेली रात्रि थी और आज से ही व्रत का ए आरम्भ था . जिस शब्द की खोज करने वह निकला था, वह उसे वहां सुनने को मिला .

धनंजय ने उनके पास जाकर पूछा- हे देवियो ! आप यह क्या करती हो? उन सबने कहा हम सब मां अन्नपूर्णा का व्रत करती हैं . व्रत करने से गई पूजा क्या होता है?

यह किसी ने किया भी है? इसे कब किया जाए? कैसा व्रत है में और कैसी विधि है? मुझसे भी कहो. वे कहने लगीं- इस व्रत को सब कोईकर सकते हैं .

इक्कीस दिन तक के लिए 21 गांठ का सूत लेना चाहिए . 21 दिन यदि न बनें तो एक दिन उपवास करें, यह भी न बनें तो केवलकथा सुनकर प्रसाद लें. निराहार रहकर कथा कहें, कथा सुनने वाला कोई न मिले तो पीपल के पत्तों को रख सुपारी या घृत कुमारी (गुवारपाठ) वृक्ष को सामने कर दीपक को साक्षी कर सूर्य, गाय, तुलसी या महादेव को बिना कथा सुनाए मुख में दाना न डालें.

यदि भूल से कुछ पड़ जाए तो एक दिवस फिर उपवास करें. व्रत के दिन क्रोध न करें और झूठ न बोलें. धनंजय बोला- इस व्रत के करने से क्या होगा ?

वे कहने लगीं- इसके करने से अन्धों को नेत्र मिले, लूलों को हाथ मिले, निर्धन के घर धन आए, बांझी को संतान मिले, मूर्ख को विद्या आए, जो जिस कामना से व्रत करे, मां उसकी इच्छा पूरी करती है.

वह कहने लगा- बहिनों! मेरे भी धन नहीं है, विद्या नहीं है, कुछ भी तो नहीं है, मैं तो दुखिया ब्राह्मण हूँ, मुझे इस व्रत का सूत दोगी? हां भाई तेरा कल्याण हो , तुझे देंगी, ले इस व्रत का मंगलसूत ले.

धनंजय ने व्रत किया . व्रत पूरा हुआ, तभी सरोवर में से 21 खण्ड की सुवर्ण सीढ़ी हीरा मोती जड़ी हुई प्रकट हुई.

धनंजय जय ‘अन्नपूर्णा’ ‘अन्नपूर्णा’ कहता जाता था. इस प्रकार कितनी ही सीढि़यां उतर गया तो क्या देखता है कि करोड़ों सूर्य से प्रकाशमान अन्नपूर्णा का मन्दिर है, उसके सामने सुवर्ण सिंघासन पर माता अन्नपूर्णा विराजमान हैं. सामने भिक्षा हेतु शंकर भगवान खड़े हैं.

देवांगनाएं चंवर डुलाती हैं. कितनी ही हथियार बांधे पहरा देती हैं. धनंजय दौड़कर जगदम्बा के चरणों में गिर गया. देवी उसके मन का क्लेश जान गईं .

धनंजय कहने लगा- माता! आप तो अन्तर्यामिनी हो. आपको अपनी दशा क्या बताऊँ ? माता बोली – मेरा व्रत किया है, जा संसार तेरा सत्कार करेगा .

माता ने धनंजय की जिह्नवा पर बीज मंत्र लिख दिया . अब तो उसके रोम-रोम में विद्या प्रकट हो गई . इतने में क्या देखता है कि वह काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा है. मां का वरदान ले धनंजय घर आया .

सुलक्षणा से सब बात कही . माता जी की कृपा से उसके घर में सम्पत्ति उमड़ने लगी. छोटा सा घर बहुत बड़ा गिना जाने लगा. जैसे शहद के छत्ते में मक्खियां जमा होती हैं, उसी प्रकार अनेक सगे सम्बंधी आकर उसकी बड़ाई करने लगे.

कहने लगे-इतना धन और इतना बड़ा घर, सुन्दर संतान नहीं तो इस कमाई का कौन भोग करेगा? सुलक्षणा से संतान नहीं है, इसलिए तुम दूसरा विवाह करो .

अनिच्छा होते हुए भी धनंजय को दूसरा विवाह करना पड़ा और सती सुलक्षणा को सौत का दुःख उठाना पड़ा .

इस प्रकार दिन बीतते गय फिर अगहन मास आया. नये बंधन से बंधे पति से सुलक्षणा ने कहलाया कि हम व्रत के प्रभाव से सुखी हुए हैं . इस कारण यह व्रत छोड़ना नहीं चाहिए .

यह माता जी का प्रताप है. जो हम इतने सम्पन्न और सुखी हैं . सुलक्षणा की बात सुन धनंजय उसके यहां आया और व्रत में बैठ गया. नयी बहू को इस व्रत की खबर नहीं थी.

वह धनंजय के आने की राह देख रही थी . दिन बीतते गये और व्रत पूर्ण होने में तीन दिवस बाकी थे कि नयी बहू को खबर पड़ी. उसके मन में ईष्र्या की ज्वाला दहक रही थी .

सुलक्षणा के घर आ पहुँची ओैर उसने वहां भगदड़ मचा दी . वह धनंजय को अपने साथ ले गईनये घर में धनंजय को थोड़ी देर के लिए निद्रा ने आ दबाया .

इसी समय नई बहू ने उसका व्रत का सूत तोड़कर आग में फेंक दिया . अब तो माता जी का कोप जाग गया .

घर में अकस्मात आग लग गई, सब कुछ जलकर खाक हो गया . सुलक्षणा जान गई और पति को फिर अपने घर ले आई .

नई बहू रूठ कर पिता के घर जा बैठी . पति को परमेश्वर मानने वाली सुलक्षणा बोली- नाथ ! घबड़ाना नहीं . माता जी की कृपा अलौकिक है .

पुत्र कुपुत्र हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती. अब आप श्रद्धा और भक्ति से आराधना शुरू करो. वे जरूर हमारा कल्याण करेंगी .

धनंजय फिर माता के पीछे पड़ गया. फिर वहीं सरोवर सीढ़ी प्रकट हुई, उसमें ‘ मां अन्नपूर्णा’ कहकर वह उतर गया. वहां जा माता जी के चरणों में रुदन करने लगा .

माता प्रसन्न हो बोलीं-यह मेरी स्वर्ण की मूर्ति ले, उसकी पूजा करना, तू फिर सुखी हो जायेगा, जा तुझे मेरा आशीर्वाद है . तेरी स्त्री सुलक्षणा ने श्रद्धा से मेरा व्रत किया है, उसे मैंने पुत्र दिया है .

धनंजय ने आँखें खोलीं तो खुद को काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा पाया . वहां से फिर उसी प्रकार घर को आया . इधर सुलक्षणा के दिन चढ़े और महीने पूरे होते ही पुत्र का जन्म हुआ .

गांव में आश्चर्य की लहर दौड़ गई . मानता आने लगा. इस प्रकार उसी गांव के निःसंतान सेठ के पुत्र होने पर उसने माता अन्नपूर्णा का मन्दिर बनवा दिया, उसमें माता जी धूमधाम से पधारीं, यज्ञ किया और धनंजय को मन्दिर के आचार्य का पद दे दिया .

जीविका के लिए मन्दिर की दक्षिणा और रहने के लिए बड़ा सुन्दर सा भवन दिया. धनंजय स्त्री-पुत्र सहित वहां रहने लगा .

माता जी की चढ़ावे में भरपूर आमदनी होने लगी. उधर नई बहू के पिता के घर डाका पड़ा, सब लुट गया, वे भीख मांगकर पेट भरने लगे .

सुलक्षणा ने यह सुना तो उन्हे बुला भेजा, अलग घर में रख लिया और उनके अन्न-वस्त्र का प्रबंध कर दिया .

धनंजय, सुलक्षणा और उसका पुत्र माता जी की कृपा से आनन्द से रहने लगे. माता जी ने जैसे इनके भण्डार भरे वैसे सबके भण्डार भरें.

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प्रेम से बोलो माता अन्नपूर्णा की जय

Annapurna Mata ki Aarti- प्रिय भक्तजनों माता की कथा के बाद माता अन्नपूर्णा की आरती अवश्य करें-

अन्नपूर्णा माता की आरती

बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम

जो नहीं ध्यावे उम्हें अम्बिके, कहाँ उसे विश्राम |

अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम,

प्रलय युगांतर और जन्मान्तर , कालांतर तक नाम |

सुर असुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहं राम,

चुमहि चरण चतुर चतुरानन, चारू चक्रधर श्याम |

चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखही ललाम,

देवी देव दयनीय दशा में, दया दया तब नाम |

त्राहि त्राहि शरणागतवत्सल, शरणरूप तव धाम,

श्री ह्री श्रद्धा श्री ऐं, विद्या क्लीं कमला काम |

कांती भ्रान्तिमयी कांति, शांतिमयीवर दे तू निष्काम |

बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम

बोलो अन्नपूर्णा माता की जय